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मुसीबते ही जीवन है ? ————————

विचारों का संसार
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जीवन में पग पग पर मुसीबते आती है , जब व्यक्ति सोचता है कि जिन्दगी में मैंने बहुत मुसीबते झेल ली है ? नयी मुसीबत सामने आजाती जाती ? ऐसा नहीं है कि यह मुसीबते हम जैसे व्यक्ति के सामने ही आयी हो, भगवान राम के सामने भी ऐसी ही मुसीबते आयी है, विवाह के बाद, वनवास की मुसीबत , इसके बाद तो राम मुसीबतों का पर्याय बन गए, भगवान कृष्ण के साथ क्या कम मुसीबते थी, कौरव पांडव में किसी एक चुनना, कुंती को तेरे ५ पुत्र ही रहेंगे यह बताना, भीष्म पितामह और अपने करीबो से युद्धय करने का गीता का ज्ञान अर्जुन को देना ? क्या यह आसान था ? मेरे विचार से यह सब आसन नहीं था, उन्होंने इस मुसीबतों से सामना किया, इसीलिए पूजे जा रहे है, उन्होंने अपनी भूमिका निभाने में आ रही कठिनाईयो का जिक्र किसी से नहीं किया, किसी को अपने दुःख में शामिल नहीं किया, किसी को अपना सहभागी नहीं बनाया ? इसलिए वे हमारे आदर्श है? आज भी हमारे लिए आदर्श है, फिर वो कोन सी बात है जो हमें मुसीबतों से निपटने की ताकत नहीं देता ? वे भी गृहस्थ थे, हम भी इसी भूमिका में है ? हम नहीं झेल सकते ? उन्होंने यह भूमिका भी बखूभी निभाई ? फिर हम आज इन मुसीबतों से क्यों घबरा रहे है, यह कलयुग का जीवन है ? यहाँ मुसीबतों के साथ बहुत सारे अन्य कारक भी है, इन सबसे निपटकर सबके सामने एक आदर्श की भूमिका निर्वहन करना है ? क्यों हम कमजोर दिख रहे है ? सबका सामना आपको ही करना है, उदासीन होने में जो उर्जा नष्ट कर रहे ? उसे उत्साह में लगाने से अतिरिक्त उर्जा का समावेश होगा और यही अतिरिक्त उर्जा ही हमें अपने अंतिम मुकाम तक ले जाएगी ? यही सच है ? मुसीबते ही हमें आदर्श बनती है ? खूब मुसीबते आये इन सबसे सबको उदासीन कर हम आगे बढे यही सन्देश देना आज प्रासंगिक है ? शुभकामनाये हमारे जीवन को आगे बढ़ने से रोक रही है ? फिर हम शुभ कामनाओ के लिए लटके है ? यही जीवन है ?
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