Menu
blogid : 13121 postid : 17

ना कोई अपना है न कोई पराया ———————-

विचारों का संसार
विचारों का संसार
  • 160 Posts
  • 31 Comments

यह अपना है यह पराया है , किसने जाना यह अपना है और पराया है, बेहद कठिन है, जिसको हम अपना मानते है, कुछ ही दिनो मे वह पराया हो जाता है, पराया अपना हो जाता है, काम निकलने के बाद न कोई अपना रहता है ना कोई पराया, यही अद्भुत है ? जिस बेटे या बेटियो को हमने जन्म दिया वही बेगाने हो जाते है, चिता मे अंतिम अग्नि देने के लिए ही कोई आ पाता है, दूर रहने का वास्ता देकर अपना पलड़ा झाड लेते है, पराये ही दाह संस्कार करते है? निज जन जिसे चाहते है वही उनका अंतिम संस्कार करता है ? फिर अपना पराया का बोध खत्म हो जाता है, यह बात सत्य है कि मरे व्यक्ति को इस बात से क्या फरक पड़ता है उसका दाह संस्कार कोन कर रहा है? यदि कोई न करे तो भी कोई न कोई कर देता है, न करे तो भी उसे क्या फर्क पड़ता है ? यदि किसी का भोक्ष बने इससे बड़ा और क्या संस्कार हो सकता है ? आँख दान और शरीर दान यही एक प्रकार है,किसी का शरीर का उपयोग ही सर्वोत्तम दान है,हमने यही सीखा है कि कोई करे या ना करे हम अपना संस्कार खुद कर लेंगे जब आता हूँ तो स्वागत के लिये बहुत सारे लोग होते है ? किन्तु वह यह भी जानता है कि जब जाता हूँ तो इससे कम लोग रहते है, यही उसका अनुमान रहता है ? यही सच होता है, वह यह भी जानता है कि परिवार कुछ दिन आंसू बहायेगा फिर उसी गति से चलेगा ? यह उसने देखा है, अनुभव किया है। इसीकारण उसकी यह अनुभूति है। इसी कारण मृतक कहता है ना कोई अपना है ना कोई पराया, यही नवजात शिशु की भी सोच होती है? जीवन का सार यही है ?

कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर, न काहू से दोस्ती न कहू से बैर

humaramadhyapradesh.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply