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वाणी —–

विचारों का संसार
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वाणी
—–
यह प्रतिदन्व्ता का युग है, हर जगह आपको निचा दिखाने का यह युग है, यह सब उसके साथ होता है, जो  लकीर की सीध मे जो चलता है, कुछ नया कर गुजरना चाहता है, कुछ नया करने के  लिए उम्र की जरूरत नहीं, नया कुछ किया कि तमाशा बन जाता है,अब दाऊद के आईक्यू की तुलना विवेकानंद से क्या कर दी? नया बवाल खड़ा हो गया ? उनका यह बताना उद्देश्य था कि दोनों का आईक्यू एक समान होने के बाद भी दोनों कैसे विपरीत दिशा मे जाते है ? यह मुझे नहीं मालूम कि दाऊद का आईक्यू गडकरी जी के पास कैसा आया ? विवेकानन्द जी का तो आईक्यू सब के समझ मे आता है, उनका आईक्यू बहुत जादा था, इसी कारण वे बहुत कम अवस्था मे ही बहुत जानने लगे थे ? यहा तक कि वे अपने गुरु को भगवान का दर्शन कराने के लिए जिद्द पकड़े थे, मुझे नहीं मालूम दाऊद ने ऐसा कोनसा काम किया था ? जब किसी के ज्ञान का ज्ञान न हो तो उसकी तुलना करने का दुसाहस करने की जोखिम नहीं उठानी चाहिए ? राजनेता बिना जानकारी के यह जोखिम उठाते है और मुह की  खाते है ? बस प्रतिद्वंदीयों को मौका चाहिए वे बखुभी इसे केश कर लेते है ? आज ऐसे तुलना करने वाले अपनी सफाई देते घूम रहे है, वाणी का सोच समझ कर ही प्रयोग जरूरी है, ऐसा नहीं करने पर जो होना चाहिए उसका अन्यथा होता ? जब ग्रह साथ ना दे तो घर मे बैटना जादा हितकारी होता है, ग्रह साथ छोडने की पूर्व कल्पना पूर्व से ही दे देते है ? जो समझ पाता वही सही है, जिसके समझ मे भूल हुयी वही ऐसे ही दुतकारा जाता है। यही सही है, जो मन न करे उसे उत्साह के साथ न कहे। सरल सीधी भाषा का प्रयोग हमेशा अच्छा होता है, एक या दो प्रदेश के मुखिया साथ हो तो सब सही होता यह मानना हमेशा सही नहीं होता ।  वाणी का उपयोग हमेशा सोच समझकर करने में ही उसका सत्कार है.
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यह प्रतिदन्व्ता का युग है, हर जगह आपको निचा दिखाने का यह युग है, यह सब उसके साथ होता है, जो  लकीर की सीध मे जो चलता है, कुछ नया कर गुजरना चाहता है, कुछ नया करने के  लिए उम्र की जरूरत नहीं, नया कुछ किया कि तमाशा बन जाता है,अब दाऊद के आईक्यू की तुलना विवेकानंद से क्या कर दी? नया बवाल खड़ा हो गया ? उनका यह बताना उद्देश्य था कि दोनों का आईक्यू एक समान होने के बाद भी दोनों कैसे विपरीत दिशा मे जाते है ? यह मुझे नहीं मालूम कि दाऊद का आईक्यू गडकरी जी के पास कैसा आया ? विवेकानन्द जी का तो आईक्यू सब के समझ मे आता है, उनका आईक्यू बहुत जादा था, इसी कारण वे बहुत कम अवस्था मे ही बहुत जानने लगे थे ? यहा तक कि वे अपने गुरु को भगवान का दर्शन कराने के लिए जिद्द पकड़े थे, मुझे नहीं मालूम दाऊद ने ऐसा कोनसा काम किया था ? जब किसी के ज्ञान का ज्ञान न हो तो उसकी तुलना करने का दुसाहस करने की जोखिम नहीं उठानी चाहिए ? राजनेता बिना जानकारी के यह जोखिम उठाते है और मुह की  खाते है ? बस प्रतिद्वंदीयों को मौका चाहिए वे बखुभी इसे केश कर लेते है ? आज ऐसे तुलना करने वाले अपनी सफाई देते घूम रहे है, वाणी का सोच समझ कर ही प्रयोग जरूरी है, ऐसा नहीं करने पर जो होना चाहिए उसका अन्यथा होता ? जब ग्रह साथ ना दे तो घर मे बैटना जादा हितकारी होता है, ग्रह साथ छोडने की पूर्व कल्पना पूर्व से ही दे देते है ? जो समझ पाता वही सही है, जिसके समझ मे भूल हुयी वही ऐसे ही दुतकारा जाता है। यही सही है, जो मन न करे उसे उत्साह के साथ न कहे। सरल सीधी भाषा का प्रयोग हमेशा अच्छा होता है, एक या दो प्रदेश के मुखिया साथ हो तो सब सही होता यह मानना हमेशा सही नहीं होता ।  वाणी का उपयोग हमेशा सोच समझकर करने में ही उसका सत्कार है.
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