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लक्ष्मी पुत्र ——-

विचारों का संसार
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जग में बहुत ऐसे द्रश्य देखने पड़ते है, जिनकी हमने कल्पना नहीं की है, कभी कभी तो एक अदने से व्यक्ति के सामने गुहार लगानी पड़ती है, भैया साहब से मिला दो, यह सही कि वह हमारे लिये अदना सा आदमी है किन्तु उस कार्यालय के लिये महत्वपूर्ण है , कोन आदमी कब महत्वपूर्ण हो जाता जाता है ? डाक्टर के यहाँ नम्बर लगाने वाला छोटा सा आदमी भी महत्व प्राप्त कर लेता है, जो सड़क में हमें नमस्कार करता है यही अपने कर्तव्य स्थल पर हमें नमस्कार कराता है, कब किसका महत्व बढ़ जायेगा ? कोई जानता नहीं जानता है । यही पुरुश्य्स भाग्यम है, कोन कहा पहुच जायेगा किसी को भी पता भी नहीं चलता जिनको हम नमस्कार करते है वही नमन करवाता है। जिनके लिये लिये यह काम करते है वे लक्ष्मी के पुत्र होते है, इसी का प्रभाव इन्ही पर पड़ता है। जो संभव नहीं होता वह भी संभव हो जाता है,यह लक्ष्मी का ही पुन्य प्रताप है। लक्ष्मी पुत्र जिसे चाहे हाथ जोड़कर खड़ा रख सकता है, सरस्वती पुत्र याचक बन जाता है,यही नहीं, बलवान भी इनके सामने निर्बल हो जाते है, बल और सरस्वती का प्रयोग लक्ष्मी पुत्र से अच्छा कोई नहीं कर सकता, जैसा यह नचाती वैसे नाचने को मजबूर है, अनेक बुद्धिहीन जो लक्ष्मी से युक्त है , अनेको बुध्दीमान के बुद्धि से ही लक्ष्मी को प्राप्त करते है, सरस्वती का अपमान करते हुए भी ये लक्ष्मी श्री अपने आपको अहमंयुक्त कर लेते है ? लोगो के आपके पास कितना भी ज्ञान हो उस पर, यह लक्ष्मी पुत्र कभी भी अपना वर्चस्व दिखा सकता है। ” कहा जाता है कि लक्ष्मी और सरस्वती कभी एक साथ नहीं रहती लेकिन आज सरस्वती लक्ष्मी के सामने नतमस्तक है” यह सत्य है रोज के जीवन में हम देखते है, अनुभव भी करते है, मै इसे कलयुग मानकर अपने आपको संतुष्ट कर लेता हूँ ? नहीं जानता आप किस रूप में इसे लेते है ?
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