क्या मै ढोने के लिये या भोकने के लिये पैदा हुआ हूँ ————————————-
विचारों का संसार
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क्या मै ढोने के लिये या भोकने के लिये पैदा हुआ हूँ
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क्या हम बोझा ढोने के लिए या भोकने के लिए ही पैदा हुये है। यह गधा और कुता कह रहा है। इनके कहने मे दम है। मजबूती के साथ ये बात कहते है। कभी धोबी को गधा प्यारा होता है तब कुता भी अफसर का प्यारा होता है। ये दोनों बिचारे अपनी जिंदगी जीते है। वफ़ादारी निभाना बखूबी जानते है। चाहे कितना भी बोझ लाद दे यह जानवर उसे अंतिम सीमा तक ले जाता है। जैसे भी हो अपनी वफ़ादारी पर दाग नहीं लगने देता। कुता भी यही व्यवहार करता है। मालिक के एक बार के पुचकार से वह उसका हो जाता है। खाना मिले या ना मिले घर की रक्षा में अपनी जान कुर्बान कर देता है। अफ़सोस ओर दुःख में इन मालिकों के आँख से दो आंसू भी नहीं निकल पाते। इनकी अंतिम क्रिया कुछ ही लोग कर पाते है। इनके मनुष्य नौकर यह धर्म निभाते है। कितना विरोधाभास है ? जो अपनी ईमानदारी की इज्ज़त से डरता है। वही इनकी इनकी कर्तव्य क्षमता का कोई हिसाब हमारे पास नहीं होता। अनेक मालिक जानते है कि थोड़ी पुचकार ओर थोडा जादा खाना देने से यह दोनों जानवर खुश हो जाते है। बहुत कम लोग ऐसे है जो इनकी मेहनत का मोल इन्हें दे पाते है। इसीकारण सुरक्षित होते हुए भी ये उपेक्षा का जीवन जीते है। मध्यम वर्गीय लोगो का जीवन इसी तरह से आज उच्च वर्गीय शोषित कर रहे है। जो अपने स्वार्थ का उनसे ले लेतेहै किन्तु देने वाले की फ़िक्र करना कम लोग जानते है। humaramadhyapraDESH.COM
क्या हम बोझा ढोने के लिए या भोकने के लिए ही पैदा हुये है। यह गधा और कुता कह रहा है। इनके कहने मे दम है। मजबूती के साथ ये बात कहते है। कभी धोबी को गधा प्यारा होता है तब कुता भी अफसर का प्यारा होता है। ये दोनों बिचारे अपनी जिंदगी जीते है। वफ़ादारी निभाना बखूबी जानते है। चाहे कितना भी बोझ लाद दे यह जानवर उसे अंतिम सीमा तक ले जाता है। जैसे भी हो अपनी वफ़ादारी पर दाग नहीं लगने देता। कुता भी यही व्यवहार करता है। मालिक के एक बार के पुचकार से वह उसका हो जाता है। खाना मिले या ना मिले घर की रक्षा में अपनी जान कुर्बान कर देता है। अफ़सोस ओर दुःख में इन मालिकों के आँख से दो आंसू भी नहीं निकल पाते। इनकी अंतिम क्रिया कुछ ही लोग कर पाते है। इनके मनुष्य नौकर यह धर्म निभाते है। कितना विरोधाभास है ? जो अपनी ईमानदारी की इज्ज़त से डरता है। वही इनकी इनकी कर्तव्य क्षमता का कोई हिसाब हमारे पास नहीं होता। अनेक मालिक जानते है कि थोड़ी पुचकार ओर थोडा जादा खाना देने से यह दोनों जानवर खुश हो जाते है। बहुत कम लोग ऐसे है जो इनकी मेहनत का मोल इन्हें दे पाते है। इसीकारण सुरक्षित होते हुए भी ये उपेक्षा का जीवन जीते है। मध्यम वर्गीय लोगो का जीवन इसी तरह से आज उच्च वर्गीय शोषित कर रहे है। जो अपने स्वार्थ का उनसे ले लेतेहै किन्तु देने वाले की फ़िक्र करना कम लोग जानते है। humaramadhyapraDESH.COM
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