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हमें रोकने वालो ने मैदान छोड़ दिया है.

विचारों का संसार
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हमें रोकने वालो ने मैदान छोड़ दिया है.
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कुछ दिनों पूर्व मैंने स्वछता अभियान के लिए अपनी आदतो के बारे में लिखा था. जिसमे मैंने उल्लेख किया था कि हमारी आदते इस अभियान में अवरोध पैदा कर रही. यहाँ वहा गंदगी करने, सड़क के किनारो को गन्दा करना हमारी आदत बन गयी है. यह बात सही है कि हम अनियंत्रित हो गए है किन्तु हमें नियंत्रित करने वाले कहा है, नगरीय निकाय का एक भी अफसर मैदान में नहीं दिखता, किन सड़को पर गडडा है, वह क्या आवागमन में बाधक है ? कहा कि स्ट्रीट लाइट नहीं जल रही है, कौन कचरा सड़क पर डाल रहा है ? कौन अतिक्रमण कर रहा है ? किसने फुट पाथ घेर लिया है ? सड़को के किनारे को कौन गन्दा कर रहा है ? भोपाल में अधिकांश जगह कूड़े के ढेर दिख जाएंगे, सड़क को गन्दा करने वाले सैकड़ो के संख्या में मिल जायेंगे. लेकिन इन पर नज़र कौन रखे. जिन्हे इसकी निगरानी करनी है वे ए.सी. में बैठे है. किसी भी अधिकारी को शहर कि चिंता नहीं है. शिकायत करने पर आते है, किन्तु पडोसी से कौन दुश्मनी लेगा. मेरे मेरे अनुभव के अनुसार नगरीय निकाय के लेखा शाखा और स्थापना में काम करने वालो को छोड़कर किसी को भी दफ्तर में बैठने का अधिकार नहीं है. ये मैदानी अधिकारी है. सफाई के स्वास्थ अधिकारी, लाइट के लिए इलेक्ट्रिक इंजीनियर, बगीचो के संधारण के उद्यान अधिकारी , अतिक्रमण के लिए एनक्रोचमेंट आफिसर तैनात है, मोटी तनखाह लेते है. जनप्रतिनिधि पार्षद भी उदासीन रहते है, कुछ दिन पूर्व परिषद के अध्यक्ष ने अपने वार्ड में अपना रौब दिखाया था, महापौर तो घूमते है किन्तु उनकी भी सीमा है. 1980 के दशक के जनप्रतिनिधि उनके वार्ड की सफाई के लिए अफसरों को आगाह करते रहते थे. वे इस पर नज़र रखते थे. सुबह 8 बजे के पहले पूरा शहर साफ़ दिखता था. अब इन अधिकारियो को क्या हो गया है. जिन्हे मैदान में रहना चाहिए वे ए.सी. क्यों बैठे है?. यदि ये सोते रहेंगे तो जनता तो अपनी मनमानी करेगी क्योकि ऐसा करना जनता की आदत बन चुकी है. व्यवस्था में कुछ तो खामी है. इस खामी को दूरकर अफसरों को मैदान सम्हलाना पड़ेगा? तब ही शहर स्वच्छ रह पायेगा. जनता अपनी आदत छोड़े और अफसर मैदान में आये तब ही स्वच्छ भारत अभियान सफल होगा. कुछ भी करते रहे और अच्छे दिन कब आएंगे पूछते रहने से समस्या का हल नहीं होगा. जब समाचार पत्र में खबर आती है या कोई वीआईपी जब शहर में आता है तब सफाई और सड़को के गडडे क्यों भरे जाते है. 10 से 12 सितम्बर तक हमारे शहर में हिंदी सम्मलेन है .इसके लिए इन सड़को के गड्डे भरने का काम युध्द स्तर पर चल रहा है, जबकि अन्य सड़को के जानलेवा गड्डे अपनी जगह यथावत है.

हमें रोकने वालो ने मैदान छोड़ दिया है.
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कुछ दिनों पूर्व मैंने स्वछता अभियान के लिए अपनी आदतो के बारे में लिखा था. जिसमे मैंने उल्लेख किया था कि हमारी आदते इस अभियान में अवरोध पैदा कर रही. यहाँ वहा गंदगी करने, सड़क के किनारो को गन्दा करना हमारी आदत बन गयी है. यह बात सही है कि हम अनियंत्रित हो गए है किन्तु हमें नियंत्रित करने वाले कहा है, नगरीय निकाय का एक भी अफसर मैदान में नहीं दिखता, किन सड़को पर गडडा है, वह क्या आवागमन में बाधक है ? कहा कि स्ट्रीट लाइट नहीं जल रही है, कौन कचरा सड़क पर डाल रहा है ? कौन अतिक्रमण कर रहा है ? किसने फुट पाथ घेर लिया है ? सड़को के किनारे को कौन गन्दा कर रहा है ? भोपाल में अधिकांश जगह कूड़े के ढेर दिख जाएंगे, सड़क को गन्दा करने वाले सैकड़ो के संख्या में मिल जायेंगे. लेकिन इन पर नज़र कौन रखे. जिन्हे इसकी निगरानी करनी है वे ए.सी. में बैठे है. किसी भी अधिकारी को शहर कि चिंता नहीं है. शिकायत करने पर आते है, किन्तु पडोसी से कौन दुश्मनी लेगा. मेरे मेरे अनुभव के अनुसार नगरीय निकाय के लेखा शाखा और स्थापना में काम करने वालो को छोड़कर किसी को भी दफ्तर में बैठने का अधिकार नहीं है. ये मैदानी अधिकारी है. सफाई के स्वास्थ अधिकारी, लाइट के लिए इलेक्ट्रिक इंजीनियर, बगीचो के संधारण के उद्यान अधिकारी , अतिक्रमण के लिए एनक्रोचमेंट आफिसर तैनात है, मोटी तनखाह लेते है. जनप्रतिनिधि पार्षद भी उदासीन रहते है, कुछ दिन पूर्व परिषद के अध्यक्ष ने अपने वार्ड में अपना रौब दिखाया था, महापौर तो घूमते है किन्तु उनकी भी सीमा है. 1980 के दशक के जनप्रतिनिधि उनके वार्ड की सफाई के लिए अफसरों को आगाह करते रहते थे. वे इस पर नज़र रखते थे. सुबह 8 बजे के पहले पूरा शहर साफ़ दिखता था. अब इन अधिकारियो को क्या हो गया है. जिन्हे मैदान में रहना चाहिए वे ए.सी. क्यों बैठे है?. यदि ये सोते रहेंगे तो जनता तो अपनी मनमानी करेगी क्योकि ऐसा करना जनता की आदत बन चुकी है. व्यवस्था में कुछ तो खामी है. इस खामी को दूरकर अफसरों को मैदान सम्हलाना पड़ेगा? तब ही शहर स्वच्छ रह पायेगा. जनता अपनी आदत छोड़े और अफसर मैदान में आये तब ही स्वच्छ भारत अभियान सफल होगा. कुछ भी करते रहे और अच्छे दिन कब आएंगे पूछते रहने से समस्या का हल नहीं होगा. जब समाचार पत्र में खबर आती है या कोई वीआईपी जब शहर में आता है तब सफाई और सड़को के गडडे क्यों भरे जाते है. 10 से 12 सितम्बर तक हमारे शहर में हिंदी सम्मलेन है .इसके लिए इन सड़को के गड्डे भरने का काम युध्द स्तर पर चल रहा है, जबकि अन्य सड़को के जानलेवा गड्डे अपनी जगह यथावत है.

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